पुराणों के कृष्ण बनाम महाभारत के कृष्ण


डॉ विवेक आर्य

कृष्ण जन्माष्टमी पर सभी हिन्दू धर्म को मानने वाले भगवान श्री कृष्ण जी महाराज को याद करते हैं. कुछ उन्हें गीता का ज्ञान देने के लिए याद करते हैं कुछ उन्हें दुष्ट कौरवों का नाश करने के लिए याद करते हैं.पर कुछ लोग उन्हें अलग तरीके से याद करते हैं.

फिल्म रेडी में सलमान खान पर फिल्माया गया गाना “कुड़ियों का नशा प्यारे,नशा सबसे नशीला है,जिसे देखों यहाँ वो,हुसन की बारिश में गीला है,इश्क के नाम पे करते सभी अब रासलीला है,मैं करूँ तो साला,Character ढीला है,मैं करूँ तो साला,Character ढीला है.”

सन २००५ में उत्तर प्रदेश में पुलिस अफसर डी के पांडा राधा के रूप में सिंगार करके दफ्तर में आने लगे और कहने लगे की मुझे कृष्ण से प्यार हो गया हैं और में अब उनकी राधा हूँ. अमरीका से उनकी एक भगत लड़की आकर साथ रहने लग गयी.उनकी पत्नी वीणा पांडा का कथन था की यह सब ढोंग हैं.

इस्कोन के संस्थापक प्रभुपाद जी एवं अमरीका में धर्म गुरु दीपक चोपरा के अनुसार ” कृष्ण को सही प्रकार से जानने के बाद ही हम वलीनतीन डे (प्रेमिओं का दिन) के सही अर्थ को जान सकते हैं.

इस्लाम को मानने वाले जो बहुपत्नीवाद में विश्वास करते हैं सदा कृष्ण जी महाराज पर १६००० रानी रखने का आरोप लगा कर उनका माखोल करते हैं.

स्वामी दयानंद अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में श्री कृष्ण जी महाराज के बारे में लिखते हैं की पूरे महाभारत में श्री कृष्ण के चरित्र में कोई दोष नहीं मिलता एवं उन्हें आपत पुरुष कहाँ हैं.स्वामी दयानंद श्री कृष्ण जी को महान विद्वान सदाचारी, कुशल राजनीतीज्ञ एवं सर्वथा निष्कलंक मानते हैं फिर श्री कृष्ण जी के विषय में चोर, गोपिओं का जार (रमण करने वाला), कुब्जा से सम्भोग करने वाला, रणछोड़ आदि प्रसिद्द करना उनका अपमान नहीं तो क्या हैं.श्री कृष्ण जी के चरित्र के विषय में ऐसे मिथ्या आरोप का अधर क्या हैं? इन गंदे आरोपों का आधार हैं पुराण. आइये हम सप्रमाण अपने पक्ष को सिद्ध करते हैं.

पुराण में गोपियों से कृष्ण का रमण करना

विष्णु पुराण अंश ५ अध्याय १३ श्लोक ५९,६० में लिखा हैं

वे गोपियाँ अपने पति, पिता और भाइयों के रोकने पर भी नहीं रूकती थी रोज रात्रि को वे रति “विषय भोग” की इच्छा रखने वाली कृष्ण के साथ रमण “भोग” किया करती थी. कृष्ण भी अपनी किशोर अवस्था का मान करते हुए रात्रि के समय उनके साथ रमण किया करते थे.
कृष्ण उनके साथ किस प्रकार रमण करते थे पुराणों के रचियता ने श्री कृष्ण को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैं. भागवत पुराण स्कन्द १० अध्याय ३३ शलोक १७ में लिखा हैं –

कृष्ण कभी उनका शरीर अपने हाथों से स्पर्श करते थे, कभी प्रेम भरी तिरछी चितवन से उनकी और देखते थे, कभी मस्त हो उनसे खुलकर हास विलास ‘मजाक’ करते थे.जिस प्रकार बालक तन्मय होकर अपनी परछाई से खेलता हैं वैसे ही मस्त होकर कृष्ण ने उन ब्रज सुंदरियों के साथ रमण, काम क्रीरा ‘विषय भोग’ किया.

भागवत पुराण स्कन्द १० अध्याय २९ शलोक ४५,४६ में लिखा हैं –

कृष्णा ने जमुना के कपूर के सामान चमकीले बालू के तट पर गोपिओं के साथ प्रवेश किया. वह स्थान जलतरंगों से शीतल व कुमुदिनी की सुगंध से सुवासित था. वहां कृष्ण ने गोपियों के साथ रमण बाहें फैलाना, आलिंगन करना, गोपियों के हाथ दबाना , उनकी छोटी पकरना, जांघो पर हाथ फेरना, लहंगे का नारा खींचना, स्तन (पकरना) मजाक करना नाखूनों से उनके अंगों को नोच नोच कर जख्मी करना, विनोदपूर्ण चितवन से देखना और मुस्कराना तथा इन क्रियाओं के द्वारा नवयोवना गोपिओं को खूब जागृत करके उनके साथ कृष्णा ने रात में रमण (विषय भोग) किया.

ऐसे अभद्र विचार कृष्णा जी महाराज को कलंकित करने के लिए भागवत के रचियता नें स्कन्द १० के अध्याय २९,३३ में वर्णित किये हैं जिसका सामाजिक मर्यादा का पालन करते हुए मैं वर्णन नहीं कर रहा हूँ.

राधा और कृष्ण का पुराणों में वर्णन

राधा का नाम कृष्ण के साथ में लिया जाता हैं. महाभारत में राधा का वर्णन तक नहीं मिलता. राधा का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में अत्यंत अशोभनिय वृतांत का वर्णन करते हुए मिलता हैं.

ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय ३ शलोक ५९,६०,६१,६२ में लिखा हैं की गोलोक में कृष्ण की पत्नी राधा ने कृष्ण को पराई औरत के साथ पकर लिया तो शाप देकर कहाँ – हे कृष्ण ब्रज के प्यारे , तू मेरे सामने से चला जा तू मुझे क्यों दुःख देता हैं – हे चंचल , हे अति लम्पट कामचोर मैंने तुझे जान लिया हैं. तू मेरे घर से चला जा. तू मनुष्यों की भांति मैथुन करने में लम्पट हैं, तुझे मनुष्यों की योनी मिले, तू गौलोक से भारत में चला जा. हे सुशीले, हे शाशिकले, हे पद्मावती, हे माधवों! यह कृष्ण धूर्त हैं इसे निकल कर बहार करो, इसका यहाँ कोई काम नहीं.

ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय १५ में राधा का कृष्ण से रमण का अत्यंत अश्लील वर्णन लिखा हैं जिसका सामाजिक मर्यादा का पालन करते हुए में यहाँ विस्तार से वर्णन नहीं कर रहा हूँ.

ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय ७२ में कुब्जा का कृष्ण के साथ सम्भोग भी अत्यंत अश्लील रूप में वर्णित हैं .

राधा का कृष्ण के साथ सम्बन्ध भी भ्रामक हैं. राधा कृष्ण के बामांग से पैदा होने के कारण कृष्ण की पुत्री थी अथवा रायण से विवाह होने से कृष्ण की पुत्रवधु थी चूँकि गोलोक में रायण कृष्ण के अंश से पैदा हुआ था इसलिए कृष्ण का पुत्र हुआ जबकि पृथ्वी पर रायण कृष्ण की माता यसोधा का भाई था इसलिए कृष्ण का मामा हुआ जिससे राधा कृष्ण की मामी हुई.

कृष्ण की गोपिओं कौन थी?

पदम् पुराण उत्तर खंड अध्याय २४५ कलकत्ता से प्रकाशित में लिखा हैं की रामचंद्र जी दंडक -अरण्य वन में जब पहुचें तो उनके सुंदर स्वरुप को देखकर वहां के निवासी सारे ऋषि मुनि उनसे भोग करने की इच्छा करने लगे. उन सारे ऋषिओं ने द्वापर के अंत में गोपियों के रूप में जन्म लिया और रामचंद्र जी कृष्ण बने तब उन गोपियों के साथ कृष्ण ने भोग किया. इससे उन गोपियों की मोक्ष हो गई. वर्ना अन्य प्रकार से उनकी संसार

रुपी भवसागर से मुक्ति कभी न होती.
क्या गोपियों की उत्पत्ति का दृष्टान्त बुद्धि से स्वीकार किया जा सकता हैं?

श्री कृष्ण जी महाराज का वास्तविक रूप

अभी तक हम पुराणों में वर्णित गोपियों के दुलारे, राधा के पति, रासलीला रचाने वाले कृष्ण के विषय में पढ़ रहे थे जो निश्चित रूप से असत्य हैं.

अब हम योगिराज, निति निपुण , महान कूटनीतिज्ञ श्री कृष्ण जी महाराज के विषय में उनके सत्य रूप को जानेगे.

आनंदमठ एवं वन्दे मातरम के रचियता बंकिम चन्द्र चटर्जी जिन्होंने ३६ वर्ष तक महाभारत पर अनुसन्धान कर श्री कृष्ण जी महाराज पर उत्तम ग्रन्थ लिखा ने कहाँ हैं की महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण जी की केवल एक ही पत्नी थी जो की रुक्मणी थी, उनकी २ या ३ या १६००० पत्नियाँ होने का सवाल ही पैदा नहीं होता. रुक्मणी से विवाह के पश्चात श्री कृष्ण रुक्मणी के साथ बदरिक आश्रम चले गए और १२ वर्ष तक तप एवं ब्रहमचर्य का पालन करने के पश्चात उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम प्रदुमन था. यह श्री कृष्ण के चरित्र के साथ अन्याय हैं की उनका नाम १६००० गोपियों के साथ जोड़ा जाता हैं. महाभारत के श्री कृष्ण जैसा अलोकिक पुरुष , जिसे कोई पाप नहीं किया और जिस जैसा इस पूरी पृथ्वी पर कभी-कभी जन्म लेता हैं. स्वामी दयानद जी सत्यार्थ प्रकाश में वहीँ कथन लिखते हैं जैसा बंकिम चन्द्र चटर्जी ने कहाँ हैं. पांड्वो द्वारा जब राजसूय यज्ञ किया गया तो श्री कृष्ण जी महाराज को यज्ञ का सर्वप्रथम अर्घ प्रदान करने के लिए सबसे ज्यादा उपर्युक्त समझा गया जबकि वहां पर अनेक ऋषि मुनि , साधू महात्मा आदि उपस्थित थे.वहीँ श्री कृष्ण जी महाराज की श्रेष्ठता समझे की उन्होंने सभी आगंतुक अतिथियो के धुल भरे पैर धोने का कार्य भार लिया. श्री कृष्ण जी महाराज को सबसे बड़ा कूटनितिज्ञ भी इसीलिए कहा जाता हैं क्यूंकि उन्होंने बिना हथियार उठाये न केवल दुष्ट कौरव सेना का नाश कर दिया बल्कि धर्म की राह पर चल रहे पांडवो को विजय भी दिलवाई.

ऐसे महान व्यक्तित्व पर चोर, लम्पट, रणछोर, व्यभिचारी, चरित्रहीन , कुब्जा से समागम करने वाला आदि कहना अन्याय नहीं तो और क्या हैं और इस सभी मिथ्या बातों का श्रेय पुराणों को जाता हैं.

इसलिए महान कृष्ण जी महाराज पर कोई व्यर्थ का आक्षेप न लगाये एवं साधारण जनों को श्री कृष्ण जी महाराज के असली व्यक्तित्व को प्रस्तुत करने के लिए पुराणों का बहिष्कार आवश्यक हैं और वेदों का प्रचार आती आवश्यक हैं.

और फिर भी अगर कोई न माने तो उन पर यह लोकोक्ति लागु होती हैं-

जब उल्लू को दिन में न दिखे तो उसमें सूर्य का क्या दोष हैं?

प्रोफैसर उत्तम चन्द शरर जन्माष्टमि पर सुनाया करते थे

: तुम और हम हम कहते हैं आदर्श था इन्सान था मोहन |

…तुम कहते हो अवतार था, भगवान था मोहन ||

हम कहते हैं कि कृष्ण था पैगम्बरो हादी |

तुम कहते हो कपड़ों के चुराने का था आदि ||

हम कहते हैं जां योग पे शैदाई थी उसकी |

तुम कहते हो कुब्जा से शनासाई थी उसकी ||

हम कहते है सत्यधर्मी था गीता का रचैया |

तुम साफ सुनाते हो कि चोर था कन्हैया ||

हम रास रचाने में खुदायी ही न समझे |

तुम रास रचाने में बुराई ही न समझे ||

इन्साफ से कहना कि वह इन्सान है अच्छा |

या पाप में डूबा हुआ भगवान है अच्छा ||

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Posted on August 16, 2011, in History, Legends, Vedas. Bookmark the permalink. 42 Comments.

  1. महामानव श्रीकृष्णजी का चारित्र्य उनके तथाकथित भक्तों एवं कुछ विधर्मी तत्त्वों ने इस हद तक विकृत कर रखा है कि अब उसे यथार्थ रूप में – जिस रूप में वे वास्तव में थे – जनमानस में पुनः प्रतिष्ठित करना बड़ा कठिन काम हो गया है । आपने इस लेख से सही दिशा में स्तुत्य प्रयास किया है, तदर्थ धन्यवाद ! एक तरफ अवतारवाद की मिथ्या धारणा के कारण कृष्ण महाराज का (और साथ ही साथ सृष्टिकर्ता ईश्वर या परमात्मा का भी) सत्य स्वरूप विनष्ट किया गया, तो दूसरी तरफ उनके (श्रीकृष्णजी के) पावन चारित्र्य के साथ ऐसी-ऐसी गंदी मिथ्या कथाएं जोड़ दी गईं कि कुछ समझदार लोग तो कृष्ण से घृणा करने लगे और अन्ध भक्त लोग ऐसी मिथ्या कथाओं से प्रभावित या प्रेरित होकर अपने चारित्र्य के प्रति असावधान हो गये । अगर हमारे लोगों ने कृष्णजी के वास्तविक इतिहास की रक्षा और उसकी ठीक व्याख्या की होती तो हमारा अभ्युदय निश्चित था । जिस देश व प्रजा ने उन जैसा महात्मा पैदा किया हो उसकी अवनति हो जाय यह क्या आश्चर्य की बात नहीं है क्या ? मगर हम अभागे लोग शताब्दियों से विपरीत मार्ग पर ही चलते रहें । आर्य समाज ने तो आरम्भ से ही कृष्णजी का सच्चा जीवनचरित और जीवन सन्देश जनता के सम्मुख रखने का प्रयत्न किया है । मगर पौराणिक मानसिकता में परिवर्तन लाने के लिए कई प्रकार के व्यापक कार्यक्रमों की अपेक्षा रहती है । आपके इस प्रयास की मैं प्रशंसा करता हूं ।
    लेख के शीर्षक में प्रयुक्त “वेदों के कृष्ण” शब्द भ्रम पैदा कर सकता है कि वेदों में कृष्णजी का उल्लेख होगा । वास्तव में ऐसा नहीं है । वेदों में किसी भी मानवीय इतिहास का उल्लेख नहीं है, और न ही हो सकता है – सृष्टि के आरम्भ में प्रकाशित ईश्वरीय ज्ञान होने से ।
    = भावेश मेरजा

  2. जिस प्रकार आपने ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय ३ शलोक ५९, ६०, ६१, ६२ व भागवत पुराण के स्कन्द १० के अध्याय २९, ३३ की आलोचना करी है मैं उस से सहमत नहीं. आप के अनुसार तो क्या यह पौराणिक महान ग्रंथ असत्य हैं? आप यह किस आधार पर कह रहे है?
    मेरे विचार मैं यह सभी ग्रंथ अपने आपमें पूर्ण और सत्य हैं. जिसके लिए मैं यहाँ तर्क संगत आधार दे रहा हूँ:-
    हर पौराणिक ग्रंथ मैं कृष्ण महाराज को सर्वशक्तिमान प्रभु और युगों युगों से ऐकमात्र 16 कला संपूर्ण अवतार कहा गया है.
    इन सोलह कलाओं युध, नीति, धर्म, सौंदर्य आदि मैं “काम” (सेक्स, या लंपटता) भी ऐक कला है, और इस कला मैं भी उन्हों ने ऐसी लीला की है जो दूसरा कोई नहीं सिर्फ़ भगवान सव्यं कर सकते हैं.
    यह आपकी सोच पर निर्भर करता है की आप इसको लंपटता कहते हैं या “काम कला” के हर पहलू का संपूरण ज्ञान व उपयोग. कृष्ण भगवान ने काम कला मैं भी हर पहलू नैतिक या अनैतिक सत्या या असत्य सब प्रकार के पहलुओं का पूर्ण उपभोग व उपयोग किया है, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार उन्हों ने युध, तथा नीति के हर पहलू (सत्य-असत्य, नैतिक-अनैतिक) का उपयोग और उपभोग किया.

    • Shriman Surender Ji main aapse puchana chaunga ki agar main bhi sex me black belt le leta hu to kya srikrishna ke ek yogyta prapt kar lunga????

      Agar aap kahte hai ki sab bate thic hai toh aap musalman ko yeh mat boliye ki we kai sari shadi na kare.

      Agar aap kam ko 16 kalao me ginte hai toh bata du OSHO ko srikirshan ka avatar man sakte hai.PHIR BHI AAP NAHI SAMAJHNA CHAHTE TOH MAIN KAHUNGA KI AAIYE AUR DEBATE KIJIYE.SWASTH DEBATE.Agar hum log asatya ki rah par hai toh hame bhi satya ki rah par le chale.Dhnayawad aapka

      • main aapko batau hamare dharma ke under jo log dharma ki gaddi par baithe unhone dharma ka satya nash kar diya bebuniyadi bate likh kar.Do you know version now days happen in documentation.We call it sansodhan in hindi.Yah pranali us samay nahi apnayi gayi nahi toh aaj aisa nahi hota.Jiske man me jo aaya waha likh kar chala gaya.Satya ko chodne me aur asatya ko grahn karne me woh lage rahe.Inme aap ka naam bhi judne wala hai.

        Raja bhoj ke pita geeta ke bare me ek jagah par batate hai ki jab unhone isko padhna suru kiya tha bachpan me tab yah 2000 page ki thi aur raja bhoj ke samay me 20000 page ki ho gayi.Iska matlab iskon,mathura me baithe pakhandiye ne isko badhya hai apni bate likhkar.DEOL SAHAB YEH SATYA HAI RAJA BHOJ KE BARE ME.HO SAKTA HAI MAIN GEETA KO MAHABHART KE SATH MIX KAR DIYA HAI.LEKIN APNI BUDHI LAGAYE AGAR SRIKRISHANA KI SAHI VARNAN NAHI HOGA TOH AAP LOG DUSRE DHARMA KE BARE ME BAHAS NAHI KAR PAYENGE.KYOKI YAHI PAR WO LOG AAPKO PAKAD LETE HAI.EVEN AAPKE JO HINDU SE DUSRE DHARMA ME JATE UNKO BHI YAH BATA KAR KI KRISHNA KAISE THE POINT DIYE JATE HAI.SABHLO BHAI SATYA KO GRAHAN KARO

  3. सुरेंदर देओल जी

    हिन्दू समाज के मुख्य आधार ग्रन्थ चारों वेद हैं, वेदों को कसौटी पर रखकर हम जब भी जाँच करेंगे तो सत्य और असत्य का निर्धारण करेगे. वेदों में स्पष्ट रूप से भोगवाद की आलोचना और संयम विज्ञानं की प्रशंसा लिखी गयी हैं. एक कामी और भोगी व्यक्ति के बजाय संयम और तपस्वी जीवन को महान बताया गया हैं.फिर आप कैसे ब्रहमवेवर्त पूरण के अश्लील प्रसंगों को सत्य बता कर वेदों में वर्णित ब्रहमचर्य विज्ञान को नकार रहे हैं.

    डॉ विवेक आर्य

  4. .प्रोफैसर उत्तम चन्द शरर जन्माष्टमि पर सुनाया करते थे:

    तुम और हम

    हम कहते हैं आदर्श था इन्सान था मोहन |
    तुम कहते हो अवतार था, भगवान था मोहन ||

    हम कहते हैं कि कृष्ण था पैगम्बरो हादी |
    तुम कहते हो कपड़ों के चुराने का था आदि ||

    हम कहते हैं जां योग पे शैदाई थी उसकी |
    तुम कहते हो कुब्जा से शनासाई थी उसकी ||

    हम कहते है सत्यधर्मी था गीता का रचैया |
    तुम साफ सुनाते हो कि चोर था कन्हैया ||

    हम रास रचाने में खुदायी ही न समझे |
    तुम रास रचाने में बुराई ही न समझे ||

    इन्साफ से कहना कि वह इन्सान है अच्छा |
    या पाप में डूबा हुआ भगवान है अच्छा ||

  5. श्रीमान महामहिम वेदों के महान ज्ञाता श्री सुजीत कुमार महाराज जी,
    आपकी सब महान बातों का १ ही जवाब है मेरे पास, कि भगवान भगवान होता है, और इंसान इंसान अगर आप भगवन की काम कला की बराबरी करने की औकात रखते हो तो शायद गोवर्धन पर्वत को भी उठाने की औकात रखते होंगे? आप महान हैं भाई आप शायद मरे हुए आदमी को भी वापिस ला सकते होंगे (जैसे भगवान श्री कृषण ने अपने गुरु संदीपनी ऋषि को गुरु दक्षिणा मैं उनके पुत्र को मृत्यु लोक से वापिस ला दिया था) और शायद आप हाथी कि सवारी करते हुए सुई के छिद्र से भी गुजर सकते होंगे, महान हैं आप महान है आपके तर्क और महान हैं आपकी तार्किक बुद्धि आप को शत शत नमन. इस से जयादा लिखना मेरी औकात नहीं भाई क्षमा करें.

    डॉ विवेक आर्य जी
    भक्ति रस की परिभाषा क्या है? और श्री मद भागवत का क्या औचित्य है आपके महान ज्ञान चक्षुओं की नज़र मैं. बस इतना ही बता दीजिए.

    • ज्ञान के बिना भक्ति का कोई औचत्य नहीं हैं . भक्ति बेहद जरुरी हैं क्यूंकि उससे श्रद्धा उत्पन्न होती हैं पर अगर ज्ञान के बिना भक्ति हो तो अन्धविश्वास को जनम देती हैं जैसे कुछ वर्ष पहले गणेश की मूर्तियों को दूध पिलाने के बहाने हजारों लीटर दूध को नालियों में बहा दिया गया था. कहाँ एक तरफ वेदों में ईश्वर को अन्नपुर्णा अर्थात सारे जगत को तृप्त करने वाली बताया गया हैं वही दूसरी तरफ मनुष्य जो ईश्वर को उसी के बनाये हुए खाद्य पथार्थ से तृप्त करने का निरर्थक प्रयास करता हैं. यहीं अन्धविश्वास और भक्ति में भेद हैं.

      जहाँ तक श्री मद्भागवत का उल्लेख हैं जो भी भगवत में वेदों के अनुकूल हैं वह मान्य हैं और जो प्रतिकूल हैं वे त्याग करने योग्य हैं.

      डॉ विवेक आर्य

  6. श्री मान, महाज्ञानी डॉ विवेक आर्य जी
    आप जैसे स्वम्भू डॉकटरों से मेरा अनुरोध है कि आप कभी हिमाचल के देवभूमि कुल्लू में अंतर्राष्ट्रीय दशेहरा उत्सव पर आयें और वहाँ पर निर्जीव मूर्तियों को रथ पर सवार उछलते कूदते और गले मिलते देख कर अपनी वैज्ञानिक बुधि से कोई तर्कसंगत और गले से नीचे उतर सकने वाला उचित तर्क दें .
    देवभूमि हिमाचल के ही काँगड़ा के शक्ति पीठ ज्वालामुखी में पानी के बीचों बीच निकल रही जवाला के विषय मैं भी आप की वैज्ञानिक बुधि के तर्क संगत उत्तर का मुझे इन्तेजार रहेगा
    ज्ञान अहंकारी हो जाए तो रावन जैसे कुत्ते पैदा होते हैं और उनका हश्र भी आपको मालूम ही होगा.

    • श्री मान सुरेंदर देओल जी

      स्वयंभू तो केवल ईश्वर हैं और कोई नहीं मैं तो पेशे से शिशु रोग विशेषज्ञ हूँ. आपके इस कथन का की कुल्लू के दशहरे में निर्जीव मूर्तियाँ नाचती हैं किसी भी प्रकार का वैज्ञानिक आधार नहीं हैं.जहाँ तक ज्वाला देवी की बात हैं तो वहां के पहाड़ के निचे से गैस निकलती हैं जोकि वायु से मेल होने पर स्वयं जल जाती हैं. पर इस को दिखा दिखा भोले भले लोगों के मन में अन्धविश्वास फैलाना गलत हैं.

      • श्रीमान शिष्जू रोग विशेषज्ञ
        आधार नहीं है तो आप खोज दो ना वैज्ञानिक आधार येही तो मैं कह रहा हूँ आज तक कोई वैज्ञानिक इन मूर्तियों के हिलने डुलने का आधार नहीं खोज पाया आप में सामर्थ्य है तो इस चुनौती को स्वीकार करो और खुद आ कर देख लो और उन मूर्तियों के आगे पीछे सूंघ कर या अपना विज्ञानं लगा कर खोज कर लो कि ये क्यों उछल रही हैं. आँखों के अंधे हों तो ठीक वर्ना आधार खोजने के लिए आप अपनी आँखों से देख सकते हैं इन मूर्तियों को उछलते कूदते एक दुसरे से गले मिलते. फिर अपना कोई तर्क या वैज्ञानिक आधार खोज कर हमें दे दो कि यह मूर्तियां क्यों हिल रही हैं ताकि हम भी अंध विशवास से बाहर निकल सकें आपकी महान कृपा होगी.

        शिशु रोग विशेषज्ञ साहब आप से मुझे इस तरह के आधे अधूरे (गूगल से ढूँढ कर कली हुई) ज्ञान पर आधारित उत्तर की आशा नहीं थी जवाला माँ की गैस वाली बात वैज्ञानिकों की थियोरी अभी तक साबित नहीं हुई है यह सिर्फ एक सम्भावना है मगर अभी तक वहाँ पर अत्याधुनिक मशीनों द्वारा खोज करने के वावजूद प्राकृतिक (Natural Gas) गैस होने के प्रमाण नहीं मिले हैं ONGC और वैज्ञानिकों को
        आपका बचकाना दलील को अगर मान भी लें तो वैज्ञानिक सिद्धांत के किस आधार पर आप कह रहे हैं कि वहाँ जो जवाला जल रही है वो भी पानी के बीचों बीच कैसे जल रही है? पानी को तो अग्नि शमन में इस्तेमाल किया जाता है फिर ये पानी इस आग को बुझाता क्यों नहीं?
        आग जलने मैं उत्प्रेरक का काम किस ने किया होगा क्या किसी ने वहाँ कोई तीली जला कर गैस को सुलगाया या गैस लाइटर से गैस को सुलगाया ??
        कृपया गूगल से ढूँढ कर फ़ालतू अन्गर्ल बकवास ना छापें कोई तर्क संगत बात करें.

  7. श्री मान, महाज्ञानी डॉ विवेक आर्य जी
    आप जैसे स्वम्भू डॉकटरों से मेरा अनुरोध है कि आप कभी हिमाचल के देवभूमि कुल्लू में अंतर्राष्ट्रीय दशेहरा उत्सव पर आयें और वहाँ पर निर्जीव मूर्तियों को रथ पर सवार उछलते कूदते और गले मिलते देख कर अपनी वैज्ञानिक बुधि से कोई तर्कसंगत और गले से नीचे उतर सकने वाला उचित तर्क दें .

    देवभूमि हिमाचल के ही काँगड़ा के शक्ति पीठ ज्वालामुखी में पानी के बीचों बीच निकल रही जवाला के विषय मैं भी आप की वैज्ञानिक बुधि के तर्क संगत उत्तर का मुझे इन्तेजार रहेगा

    श्री मद्भागवत में क्या वेदों के अनुकूल है और क्या नहीं इसका फैसला शंकराचार्य जैसे लोग भी नहीं कर सके तो आप ……………………..?
    ज्ञान अहंकारी हो जाए तो रावन जैसे कुत्ते पैदा होते हैं और उनका हश्र भी आपको मालूम ही होगा. वो भी महाज्ञानी ही था और जो शक्तियां उसने अर्जित कीं थीं वो भी भक्ति से ही अर्जित की थी उसका अपना सामर्थ्य क्या था? ज्ञान से सात्विकता आनी चाहिए व्यर्थ अहंकार नहीं उद्धव भी महान ज्ञानी था मगर गोपियों ने उसको भी भक्ति सिखा दी थी.
    सांसारिक विषय वास्तु का ज्ञान (MA, BA, PhD. CA, MBA, MBBS & BE) और “दिव्य ज्ञान” में क्या फर्क है यह सूरदास महाराज, तुलसीदास, मीरा बाई के जीवन से सपष्ट हो जाता है, हाँ आप जेसे महा ज्ञानी इन की जीवनियों को भी नकार सकते हैं महाराज देश मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो है.

    • भागवत स्वयं पढ़ कर देख लो अपने आप समझ में आ जायेगा की क्यूँ केवल कुछ भाग ही मानने योग्य हैं.

  8. Continued….
    श्री मद्भागवत में क्या वेदों के अनुकूल है और क्या नहीं इसका फैसला शंकराचार्य जैसे लोग भी नहीं कर सके तो आप ……………………..?
    ज्ञान अहंकारी हो जाए तो रावन जैसे कुत्ते पैदा होते हैं और उनका हश्र भी आपको मालूम ही होगा. वो भी महाज्ञानी ही था और जो शक्तियां उसने अर्जित कीं थीं वो भी भक्ति से ही अर्जित की थी उसका अपना सामर्थ्य क्या था? ज्ञान से सात्विकता आनी चाहिए व्यर्थ अहंकार नहीं उद्धव भी महान ज्ञानी था मगर गोपियों ने उसको भी भक्ति सिखा दी थी.
    सांसारिक विषय वास्तु का ज्ञान (MA, BA, PhD. CA, MBA, MBBS & BE) और “दिव्य ज्ञान” में क्या फर्क है यह सूरदास महाराज, तुलसीदास, मीरा बाई के जीवन से सपष्ट हो जाता है, हाँ आप जेसे महा ज्ञानी इन की जीवनियों को भी नकार सकते हैं महाराज देश मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो है.

  9. surender deol ji जब उल्लू को दिन में न दिखे तो उसमें सूर्य का क्या दोष हैं?

  10. surender ji

    hindu scriptures have been adulterated a lot..blind belief in those adulterated scriptures will lead us towards darkness..if the islamic invaders can destroy our temples than y cant they adulterate our scriptures?

    agar bhagwat aur brahma vaivarta puran ke in maha vulgar shlokas ka aur koi divine meaning apko dikhta hai toh please hame batayiye?? hame aapka divya gyan dijiye….

    blind believers like you are responsible for defaming our own mahapurusha..

  11. @vivek arya ji……..

    inko samjhana bekar hai….aisa logo ke karan hi hindu dharma ka ye haal hai..

  12. jay shri krishna

  13. dr vivek arya ji

    you have forgotten to write about the interpolations in purans done during 1 thousand yr of foreign rule.. if u dont write it,than people will think that these vulgar stories are real ,bcoz name of the author is maharishi veda vyasa….

    there are many hindus who dont know that their precious scriptures have been adulterated n distorted many times..

    • sirf ek baat kehna chahunga… jis purush ne ek santaan ko prapt karne se pehle 12 varsh tak vivah uprant bhi brahamcharya ka paalan kiya ho… unke charitra par ungli uthane se bda paap aur kya ho sakta hai?

    • Nimmy ji

      in last 1000 years of foriegn rule biggest agony to say is that this interpretation was done by our own ignorant pandits not foreign invaders

      • Sri Krishna the loose character!
        December 18, 2011

        Many people say that King Krishna was a loose character.

        Let us analyze whether the above is true.

        In Mahabharat Sauptika Parva 12/30 it is written:

        brahmcharyam mahad ghoram cheertva dwadasham varshikam !
        himvat parshvamabhyetya yo maya tapsarjit: !!

        That son whom I obtained through ascetic penances and observances of austere brahmacarya for twelve years on the breast of Himavati whither I had gone for the purpose. http://www.sacred-texts.com/hin/m10/m10012.htm

        Why did Sri Krishna & his wife adhere to Brahmcharya for 12 years? Did our scriptures command him to do so?

        What does Rishi Panini say about Brahmcharya:

        ahinsa satyaasteyabrahmcharyaparigraha yama: II2/30II

        2.30 Self-restraint in actions (yama) includes abstention from violence, from falsehoods, from stealing, from sexual engagements, and from acceptance of gifts. http://www.sacred-texts.com/hin/yogasutr.htm

        What is the significance of these 5 yamas?

        2.31 These five willing abstentions are not limited by rank, place, time or circumstance and constitute the Great Vow (Maha-Vrata).

        [Note: Efficacy/ Utility of Ekadashi vrat, etc for attaining samadhi is not upheld/supported by the Rishis.]

        What is the benefit of observing Brahmcharya?

        2.38 When one is confirmed in celibacy, spiritual vigor is gained. [Veerya= physical and mental power, valour, virility, etc is obtained . read Shad-darshanam-Swami Jagdeeshwaranand pp.153/ http://www.vedicbooks.com]

        Am I fooling you? How can a grihasthya be a Brahmchari?

        Observe the sayings of Rishi Manu: Chapter III http://www.sacred-texts.com/hin/manu/manu03.htm

        [45. Let (the husband) approach his wife in due season, being constantly satisfied with her (alone); he may also, being intent on pleasing her, approach her with a desire for conjugal union (on any day) excepting the Parva(s).
        46. Sixteen (days and) nights (in each month), including four days (menses) which differ from the rest and are censured by the virtuous, (are called) the natural season of women.
        47. But among these the first four, the eleventh and the thirteenth are (declared to be) forbidden; the remaining nights are recommended.
        48. On the even nights sons are conceived and daughters on the uneven ones; hence a man who desires to have sons should approach his wife in due season on the even (nights).
        49. A male child is produced by a greater quantity of male seed, a female child by the prevalence of the female; if (both are) equal, a hermaphrodite or a boy and a girl; if (both are) weak or deficient in quantity, a failure of conception (results).]

        50. He who avoids women on the six forbidden nights and on eight others, is (EQUAL IN CHASTITY TO) a student [Brahmchari], in whichever order [Ashram] he may live.

        [read Vishuddha Manusmriti by Prof. Surendra Kumar, Arsha sahitya prachar trust 455 khari baoli Delhi 110006 / ph.23953112. He has purified/restored the manu-smriti by deleting the anti-vedic interpolated verses]

        What do the vedas say about Brahmcharya ?

        Brahmcharyen tapsa deva mrityumpagnata ! Atharva 11/5/19
        By Fervour and by self-restraint the Learned/Erudite persons [deva=Vidwaan, Eeshwar, etc] drove Death away from them.
        R. Griffith translates Deva=God here which is incorrect. The context is brahmcharya and AUM is pure Consciousness. Where is the relevance of brahmcharya for AUM? http://www.sacred-texts.com/hin/av/av11005.htm
        [Read Veda translations of Paropkarini Sabha, Ajmer, ph 0145-2460120]

        Hence we have proved that Sri Krishna was a GRAHASTHYA BRAHMCHARI who followed the VEDAS and the Rishis!

        What do the Vedas say on Polygamy?

        In Atharva Veda 7.38.4, wife says that “You should only be mine. You should not even discuss/think about other women.”

        CAN SUCH A PERSON MARRY THOUSANDS OF WOMEN?

        obviously no!

        Then why do our own books say so?

        Because some low quality brahmins wrote these lies and attributed their writings to Famous Rishis of yore [I mean Puraanas, etc.

        Conclusion: Sri Krishna [the man, the king] had ONLY one wife and she was called Rukmini. They had ONLY one boy & he was called Pradyumna.

        So what should we do now?

  14. Dr vivek arya

    why it is said that shri krishna is 16 kala sampanna? can u please tell me what are those 16 kala? plz name them

  15. @Agniveer fan ji ,,,chaliye ek baar maan bhi len ki bhagvat ke un anshon ko hi man jaye jo vedon ke anukul ho ,,,par kaun sa bhag vedon ke anukul hai aur kaun sa nahi iska nirnay kaun karega ??

    • ved ko jankar aap bhi iska nirnaya kar sakte hein bhagwan. jis ko pad kar humari atma yeh nyaya kar le ki yeh satya hein aur yeh asatya hein use mane . bakika tayag kar de.atma ki nishpakshta satya anuragi mein hoti hein.

  16. वेदोपनिषदांसाराज्जाता भागवती कथा ……vedon aur upnisdon ka sar bhagvat katha hai….facebook per aap se bartalap karenge…

    • vedas speaks of celibacy means brahamcharya while bhagwat speaks of nuidity.how could be bhagwat essence of vedas?

      • Pehle jaakar Bhagwat puran ko padh lo aur Ras Leela ka matlab jaan lo, phir kehna. Tum Arya Samaj ke logo ka kaam hi hai puranon ko pakhand batana, unka virodh karna. Apni zindagi mein tum logo ne kabhi bhi puranon ko uthakar dekha bhi nahi hoga aur gaali dene chale aate ho.

  17. क्या आर्यसमाज पुराणोँ को मानता है ?

  18. लेकिन वेद पुराणोँ को मानते है

  19. dr vivek arya ..

    what do u mean by this?

    He who avoids women on the six forbidden nights and on eight others, is (EQUAL IN CHASTITY TO) a student [Brahmchari], in whichever order [Ashram] he may live.

  20. Mahabharata, Book 10 (Sauptika Parva), Chapter 12, Verses 29 & 30:

    “बरह्मचर्यं महद घॊरं चीर्त्वा दवादश वार्षिकम
    हिमवत्पार्श्वम अभ्येत्य यॊ मया तपसार्चितः

    समानव्रतचारिण्यां रुक्मिण्यां यॊ ऽनवजायत
    सनत्कुमारस तेजस्वी परद्युम्नॊ नाम मे सुतः”

    ‘brahmacaryam mahad ghoram cirtva dvadasa varsikam
    himavatparsvam abhyetya yo maya tapasarcitah

    ‘samanavratacarinyam rukminyam yo ‘nvajayata
    sanatkumaras tejasvi pradyumno nama me sutah’

    translation: Lord Krishna said to Ashwathama,

    ‘That son whom I obtained through ascetic penances and observances of austere brahmacarya for twelve years on the breast of Himavati whither I had gone for the purpose, that son of mine, Pradyumna, of great energy and a portion of Sanat-kumara himself, begotten by me upon my wife Rukmini who had practised vows as austere as mine’.

    • Bhagwad puran m hi likha h jab krishna n Braj bhoomi m apni lila poori ki tab unki aayu 11 Years ki thi Bhagwan Krishna. Ko bhagwan n bhi mane to kya koi 11 years k bacche m kaam vashna hoti h

  21. Aaj mujhe pata chal gaya ki tum arya samajiyo ka kaam hi hai puranon ko gaali dena. Unke arth ka anarth karke logo ke saamne pesh karna. Kabhi tum logo ne puranon ko utha kar dekha hi nahi. Padhna toh door ki baat hai. Had cheez ko vigyan ki kasauti par tolkar dekhte ho. Bhakti karna toh tumhe aata nahi. Bhagvad Gita ko jhutha batate ho. Milawat-Milawat chillate rehte ho. Gitapress Gorakhpur ki pustako ko Jhuth batate ho. Sanatan Dharma par sabse bade kalank ho tum Arya Samaji. Abhi bhi samay hai, sudhar jao. Aur haan, puranon ko ashleel aur pakhand kehna band kar do. Warna hum satyarth Prakash ke baare mein bolenge toh mirchi tumhe hi lagegi.

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